देवताओं की 5 शक्तिशाली चीज़े

देवताओं की पांच शक्तिशाली देवी वस्तुएं जिन्हें खुद देवताओं ने धरती लोक पर छुपा दिया. आखिर कौन सी थी, यह पांच शक्तिशाली देवी वस्तुएं.


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 प्राचीन काल में ऐसी बहुत सारी वस्तुएं मौजूद थीं. जिनके बल पर देवता या मनुष्य उनके अनुसार असीम शक्ति और चमत्कारों से परिपूर्ण हो जाते थे. ऐसी वस्तुएं आज भी किसी स्थान विशेष पर सुरक्षित छुपाई गई है. तो आज के इस Blog में हम जिक्र करेंगे, उन पांच चमत्कारी शक्तिशाली दैवीय वस्तुओं के बारे में जिन्हें खुद देवताओं ने धरती लोक पर छुपा दिया था.

 हो सकता है कि ढूंढने  या तपस्या करने पर आपको यह वस्तुएं प्राप्त हो जाए.

 पांचवें नंबर पर है अक्षय पात्र

अक्सर यह चमत्कारी अक्षय पात्र प्राचीन ऋषि मुनियों के पास हुआ करता था. अक्षय का अर्थ है, जिसका कभी छय या नाश या हो. दरअसल एक ऐसा पात्र, जिसमें कभी भी अन्न और जल समाप्त नहीं होता था. वही महाभारत में अक्षय पात्र संबंधित एक कथा भी मौजूद है. जब पांचो पांडव द्रोपदी के साथ 12 वर्षों के लिए जंगल में रहने चले गए थे. तब उनकी मुलाकात कई तरह के साधु संतों से हुई थी. वह कुटिया बनाकर रह रहे थे

. और वहां पर कई भ्रमणशील साधु संत थे. जो उनसे मिलने के लिए और कुटिया में प्रवास करने के लिए आते थे. एक दिन उनकी कुटिया में स्वयं ऋषि दुर्वासा  अपने कई सारे शिष्यों के साथ वहाँ पहुंचे. पांचो पांडवों सहित द्रोपदी के मन में एक प्रश्न था. मैं इन सैकड़ो हजारों साधुओं को आखिर भोजन कैसे करायें. तब पुरोहित ने उन्हें सूर्य के 108 नाम के साथ आराधना करने के लिए कहा. युधिष्ठिर ने इन नाम का बड़ी आस्था के साथ जप किया. और अंत में भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर युधिष्ठिर के पास प्रकट होकर उनसे पूछा कि इस पूजा अर्चना का आशय क्या है. युधिष्ठिर ने बताया कि उनकी कुटिया में स्वयं ऋषि दुर्वासा अपने कई सारे साधु शिष्यों के साथ पहुंचे हुए हैं. और हम उन्हें भोजन करने में असमर्थ है. मैं आपसे अपेक्षा रखता हूं, कि रुचि दुर्वासा और साथ ही साथ उनके सभी शिष्यों को भोजन करा सकूं. और उनके श्राप से भी बच सकूँ. कहते हैं, तब सूर्य देव ने एक तांबे का पात्र देकर युधिष्ठिर से कहा. हे युधिष्ठिर, तुम्हारी कामना पूर्ण हो. यह तांबे का बर्तन मैं तुम्हें देता हूं. तुम्हारे पास फल, फूल, शाक और  अन्न आदि चार प्रकार की भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय रहेगी. जब तक की द्रौपदी उन्हें परोसती रहेगी. तांबे का वह अक्षय पात्र लेकर युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए. और अंत में उन्होंने ऋषि दुर्वासा साथ ही साथ उनके सभी शिष्यों को भोजन  कराया. वहीं जनश्रुतियों के अनुसार, इस तरह की कई सारे अक्षय पात्र आज भी हिमालय के साधुओं के पास मौजूद है, यह पात्र सूर्य की साधना से ही प्राप्त होता है. लेकिन महाभारत के दौरान इस्तेमाल किया गया द्रोपदी का वह अक्षय पात्र आज भी हिमालय की किसी पहाड़ी में दफन है.

चौथे नंबर पर है कर्ण के कवच और कुंडल

जैसा कि हम पहले से ही जानते हैं. और इस विषय पर बहुत सारे वीडियो और ब्लाग पहले भी बन चुके हैं. कर्ण के कवच और कुंडल जन्म से ही उन्हें प्राप्त थे. दरअसल वह स्वयं सूर्य के ही अंश मान जाते हैं. कर्ण के कवच और कुंडल स्वयं अमृत से निर्मित थे. कुंडल उन्हें स्फूर्ति और शक्ति प्रदान करता था. और कवच दिव्य अस्त्रो से उनकी सुरक्षा करता था. कहते हैं,


महाभारत के युद्ध के दौरान उनके कवच और कुंडल को छल से इंद्र ने अपने पास ले लिया था. जिसकी वजह से युद्ध के अंत में कर्ण का वध संभव हो पाया. लेकिन कहते हैं, कि कर्ण का कवच और कुंडल जब इंद्र स्वर्ग लोक लेकर जा रहे थे. तब देवों द्वारा उन्हें रोक दिया गया. क्योंकि छल से प्राप्त की गई कोई भी वस्तु स्वर्ग लोक में नहीं लेकर जा सकते हैं. इसीलिए इंद्र देव को कर्ण के कवच और कुंडल धरती पर कहीं छुपाने पड़े. बहुत से जनश्रुति कहती है, कि ओम नामक पर्वत पर ही कर्ण के कवच और कुंडल को छुपाया गया है. इस विषय में आपका क्या मानना है कमेंट बॉक्स में हमें अवश्य बताइएगा.

तीसरे नंबर पर मौजूद है गांडीव, पिनाक और शारंग धनुष

गाण्डीव  महाभारत काल में सर्वाधिक प्रसिद्ध धनुष था। एक समयघोर वन के अन्दरकण्व मुनि कठोर तपस्या कर रहे थे। तपस्या करते-करतेसमाधिस्थ होने के कारण उन्हें भान ही नहीं रहा कि सारा शरीर दीमक के द्वारा बाँबी बना दिया गया। उस मिट्टी के ढेर पर ही एक सुन्दर बाँस उग आया। तपस्या जब पूर्ण हुई तब ब्रह्मा जी प्रकट हुए। उन्होंने अपने अमोघ जल के द्वारा कण्व की काया को कुन्दन बना दिया। उन्हें अनेक वरदान दिये और जब जाने लगे तो ध्यान आया कि कण्व की मूर्धा पर उगी हुई बाँस कोई सामान्य नहीं हो सकती। इसका सदुपयोग करना चाहिए। उसे काट कर ब्रह्मा जी ने विश्वकर्मा को दे दिया और विश्वकर्मा ने उससे तीन धनुष बनाएपिनाकशारंग और गाण्डीव।


इन तीनों धनुषों को ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर को समर्पित कर दिया। इसे भगवान शंकर ने इन्द्र को गाण्डीव धनुष दिया. और फिर बाद में अग्नि देव के द्वारा यह अर्जुन के पास पहुँचाअर्जुन ने इस धनुष के साथ असंख्य युद्ध जीतेयह धनुष अत्याधिक शक्तिशाली और सुदृढ़ था

हमारे यहाँ धर्मग्रंथों में इस संदर्भ में दो कथाएँ प्रचलित हैं।


1-
पिनाक भगवान शिव का मूल धनुष है। दूसरा धनुष ( सारंग) भगवान विष्णु का है। समान क्षमता वाले दोनों धनुष देवराज इंद्र द्वारा बनाया गया था।

2- भगवान विश्वकर्मा द्वारा दो दिव्य धनुष बनाया गया था जिनमें एक का नाम पिनाक तथा दूसरे का नाम शारंग जिसे क्रमश: भगवान शिव और भगवान विष्णु को प्रदान किए थे । इसी पिनाक धनुष को सीता स्वयंवर के समय प्रभु श्री राम ने तोड़ा था ।

दूसरे नंबर पर मौजूद है, तीन ऐसी चमत्कारी मणी जिन्हें धरती पर छुपाया गया है.

उनमें से एक है पारसमणी, जिसका जिक्र पौराणिक और लोक कथाओं में खूब किया गया है. इसके हजारों किस्से और कहानी आज भी प्रचलित है. दरअसल पारसमणी की खासियत है. कि पारसमणी से लोहे की किसी भी चीज को छुआ देने पर वह सोने की बन जाती थी .इससे लोहा काटा भी जा सकता था. कई लोग तो दावा भी करते हैं. कि उन्होंने पारसमणी को देखा है.


मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है. वहां से 70 किलोमीटर दूर धनवाड़ा गांव में एक कुएं में रात की रोशनी दिखाई देती है. और लोगों का मानना है कि उसे कुएं के अंदर ही पारसमणी मौजूद है. वहीं कुछ लोगों का यह भी  मानना है, कि हिमालय में ही कहीं पर पारसमणी को छुपाया गया है.

दूसरी है अश्वत्थामा की मणी, कहते हैं अश्वत्थामा की सारी शक्तियां इस मणि में समाहित थी. 


वहीं स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा की उस मणी को अश्वत्थामा से छीन लिया था.और उन्हें इस पृथ्वी लोक पर आजीवन भड़काने का श्राप भी दिया था
.



वहीं तीसरी है स्यमंतक मणी, कुछ लोग कोहिनूर को ही स्यमंतक मणी कहते हैं. हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है. यह कोई नहीं जानता. कहते हैं, यह मणी इंद्रदेव के पास थी. और वह इसे धारण करते थे. इंद्रदेव ने यह मणी सूर्य देव को दी थी. बहुत काल बाद यह मणी राजा सत्राजित के पास गई. और सत्राजित में यह मणी अपने देवघर में रखी थी.


सत्राजित का एक भाई था प्रसेनजित। प्रसेनजित ने अपने भाई को बिना बताए उसकी स्यमंतक मणि ले ली। मणि लेकर वह जंगल में शिकार खेलने चला गया। वहाँ एक सिंह ने घोड़े सहित प्रसेन को मार डाला और उस मणि को छीन लिया। वह अभी पर्वत की गुफा में प्रवेश कर ही रहा था कि मणि के लिए ऋक्षराज जाम्बवान् ने उसे मार डाला। उन्होंने वह मणि अपनी गुफा में ले जाकर बच्चे को खेलने के लिए दे दी।  अपने भाई प्रसेन के न लौटने से उसके भाई सत्राजित को बड़ा दुःख हुआ। वह कहने लगा, 'बहुत सम्भव है श्रीकृष्ण ने ही मेरे भाई को मार डाला हो, क्योंकि वह मणि गले में डालकर वन में गया था।सत्राजित की यह बात सुनकर लोग आपस में काना-फूँसी करने लगे। जब भगवान श्रीकृष्ण ने सुना कि यह कलंक का टीका मेरे सिर लगाया गया है, तब वे उसे धो-बहाने के उद्देश्य से नगर के कुछ सभ्य पुरूषों को साथ लेकर प्रसेन को ढूँढने के लिए वन में गये। वहाँ खोजते-खोजते लोगों ने देखा कि घोर जंगल में सिंह ने प्रसेन और उसके घोड़े को मार डाला है। जब वे लोग सिंह के पैरों का चिन्ह देखते हुए आगे बढ़े, तब उन लोगों ने यह भी देखा कि पर्वत पर रीछ ने सिंह को भी मार डाला है।

भगवान श्रीकृष्ण ने सब लोगों को बाहर ही बिठा दिया और अकेले ही घोर अन्धकार से भरी हुई ऋक्षराज की भयंकर गुफा में प्रवेश किया। भगवान ने वहाँ जाकर देखा कि श्रेष्ठ मणि स्यमन्तक को बच्चों का खिलौना बना दिया गया है। वे उसे हर लेने की इच्छा से बच्चे के पास जा खड़े हुए। उस गुफा में एक अपरिचित मनुष्य को देखकर बच्चे की धाय भयभीत की भाँति चिल्ला उठी। उसकी चिल्लाहट सुनकर परम बली ऋक्षराज जाम्बवान क्रोधित होकर वहाँ दौड़ आये

श्री कृष्णा और जामवंत जी का आपस में मुकाबला हुआ जिसके बाद स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने वह मणि जामवंत जी से जीत ली और उसके बाद वापस सत्राजित को लौटा दी कहते हैं कि इसके बाद समयंतक मणि कहां गई, किसी को कुछ भी नहीं पता है. वहीं जनश्रुति का दावा है कि, जगन्नाथ मंदिर में आज भी वह मणि कहीं छुपा कर रखी गई है. तो यही थी वह तीन खास मणियाँ जिन्हें देवताओं ने धरती पर ही छुपाया है

आप बात करते हैं पहले नंबर पर मौजूद दैव्यवस्तु की जो स्वयं

 हिमालय की पहाड़ियों पर आज भी मौजूद है और यह कुछ और

 नहीं बल्कि संजीवनी बूटी है

यह एक ऐसी जड़ी थी. जिसको खाने से गंभीर से गंभीर बीमारियां भी दूर हो जाती थी. जो व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होने वाला हो, वह भी उसे खाकर एकदम फिट हो जाता था. रामायण में भी ऐसा ही हुआ था. संजीवनी बूटी खाकर स्वयं लक्ष्मण जी एकदम स्वस्थ हो गए थे.बहुत सारे वैज्ञानिकों का यह भी मानना है, कि संजीवनी बूटी को खाकर एक अलग ही प्रकार की शक्ति महसूस होती है. कई साधु संतों का दावा है, कि इसका सेवन करने से बहुत भविष्य का ज्ञान प्राप्त हो जाता है. वही आयुर्वेद और अर्थववेद में उल्लेख है, कि इस औषधि का सेवन करने से व्यक्ति 500 वर्ष तक निरोगी रहकर जिंदा रह सकता है. माना जाता है, की जड़ी बूटियां के सेवन से सभी तरह के दुख दर्द दूर की जा सकते हैं. वहीं धनवान भी बना जा सकता है, जनश्रुति और साथ ही साथ कई सारे इंटरनेट पर मौजूद आर्टिकल्स में आपको यह पढ़ने और सुनने को मिल जाएगा, कि संजीवनी बूटी हिमालय के किसी पहाड़ी पर आज भी मौजूद है बस फर्क इतना है, कि लोगों को उसका हुलिया उसका रंग रूप नहीं पता. वरना आजकल दवाई बनाने वाली कंपनियां उसे संजीवनी बूटी को नहीं छोड़ती.

 तो यही थी वह पांच देवीय वस्तुएं, जिन्हें स्वयं देवताओं ने धरती पर छुपाया था. और अगर इनमें से कोई भी एक  आपको प्राप्त हो गई. तो शायद आप भी निरोगी शक्तिशाली और धनवान बन सकते हैं. आपका इस विषय पर क्या कहना है, कमेंट बॉक्स में लिखकर अवश्य बताएं. अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी है, तो लाइक करें हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें. और ज्यादा से ज्यादा शेयर भी करें.