वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
   निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥




जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज़ मन में आती हैवो है धागादूसरी चीज है ब्राह्मण।
आज आपका परिचय इससे करवाते हैं।
जनेऊ को यज्ञोपवीतउपवीतयज्ञसूत्रव्रतबन्धबलबन्धमोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती हैजिसे ‘यज्ञोपवीत धारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।

जनेऊ में तीन-सूत्र :-   त्रिमूर्ति ब्रह्माविष्णु और महेश के प्रतीक – देवऋणपितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक – सत्वरज और तम के प्रतीक होते है।
साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है। जनेऊ के एक-एक सूत्र में तीन-तीन सूत होते हैं। अतकुल तारों की संख्या नौ होती है। इनमे एक मुखदो नासिकादो आंखदो कानमल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है – हम मुख से अच्छा बोले और खाएंआंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में तीन या पांच गांठ लगाई जाती है जो प्रवर का प्रतीक है। त्रि देवों के तीन ग्रन्थि  ब्रह्मग्रन्थि भी आवश्यक है।
जनेऊ की लंबाई :-  जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। 32 विद्याएं चार वेदचार उपवेदछह अंगछह दर्शनतीन सूत्रग्रंथनौ अरण्यक मिलाकर होती है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माणव्यंजन कलाचित्रकारीसाहित्य कलादस्तकारीभाषायंत्र निर्माणसिलाईकढ़ाईबुनाईदस्तकारीआभूषण निर्माणकृषि ज्ञान आदि आती हैं।

जनेऊ बनाने की विधि :  किशोर कुमार पंत

मैं किशोर कुमार पंत आप लोगों के सामने जनेऊ बनाने की विधि प्रस्तुत करने जा रहा हूं।  इस विधि को प्रत्येक चरण पर लिख कर बताना संभव नहीं है। इसलिए मैं इस विधि को वीडियो के माध्यम से आप लोगों को समझाने का प्रयास कर रहा हूं। यह वीडियो आपको कैसा लगा इसके बारे में मुझे कमेंट करके जरूर बताएं और वीडियो को लाइक या शेयर करना ना भूले ।


जनेऊ बनाने की पारंपरिक विधि, (भाग-1)






जनेऊ बनाने की पारंपरिक विधि, (भाग-2)





जनेऊ बनाने की पारंपरिक विधि, (भाग-3)




वैसे तो हम सभी लोग जनेऊ धारण करते हैं, और इससे होने वाले लाभों से परिचित है। फिर भी मैं आप लोगों को आप लोगों जनेऊ धारण करने संबंधी कुछ नियमों और इससे होने वाले लाभों के बारे में बताऊंगा

यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र:
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
यज्ञोपवीत उतारने का मंत्र:
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।
जनेऊ पहनते समय ध्यान रखी जानी चाहिए ये बातें,
आपने कई लोगों को सूत से बना धागा पहने हुए देखा होगा, जिसे जनेऊ या यज्ञोपवीत कहा जाता हैं। इसे गले में इस तरह धारण किया जाता है कि बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे रहती हैं। जनेऊ को बहुत ही पवित्र माना जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जनेऊ धारण करते समय कुछ नियमों का पालन करने की आवश्यकता होती हैं। अगर उनको ध्यान में नहीं रखा जाए तो जनेऊ का अपमान होता हैं। तो आइये आज हम बताते हैं आपको जनेऊ पहनते समय ध्यान रखी जानी वाली बातें।

*
यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प का ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए।

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यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। खंडित यज्ञोपवीत शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है। जन्म-मरण के सूतक के बाद इसे बदल देने की परम्परा है। महिलाओं को हर मास मासिक धर्म के बाद जनेऊ को बदल देना चाहिए ।
* यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें। मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। इसके लिए भिन्न व्यवस्था रखें। बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत करना चाहिए।
* चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है। वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है। कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।

* कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है। माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है।


* जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है। जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है। कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर रहने लगता है।

जनेऊ के लाभ:
प्रत्यक्ष लाभ, जो आज के लोग समझते हैं -
जनेऊ में नियम है कि जनेऊ बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिए। मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।
मतलब साफ है कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है इससे उसको इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है।
अप्रत्यक्ष लाभ, जिसे कम लोग जानते हैं -
शरीर में कुल 365 एनर्जी पॉइंट होते हैं। अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग पॉइंट असर करते हैं। कुछ पॉइंट कॉमन भी होते हैं। एक्युप्रेशर में हर पॉइंट को दो-तीन मिनट दबाना होता है। और जनेऊ से हम यही काम करते है उस पॉइंट को हम एक्युप्रेश करते हैं।
कैसे? आइये समझते हैं -
कान के नीचे वाले हिस्से (इयर लोब) की रोजाना पांच मिनट मसाज करने से याददाश्त बेहतर होती है। यह टिप पढ़नेवाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है। अगर भूख कम करनी है तो खाने से आधा घंटा पहले कान के बाहर छोटेवाले हिस्से (ट्राइगस) को दो मिनट उंगली से दबाएं। भूख कम लगेगी। यहीं पर प्यास का भी पॉइंट होता है। निर्जला व्रत में लोग इसे दबाएं, तो प्यास कम लगेगी।
एक्युप्रेशर की शब्दावली में इसे पॉइंट जीवी 20 या डीयू 20 कहते हैं।
इसका लाभ आप देखें -
जीवी 20 -
स्थान : कान के पीछे के झुकाव में।
उपयोग: डिप्रेशन, सिरदर्द, चक्कर और सेंस ऑर्गन यानी नाक, कान और आंख से जुड़ी बीमारियों में राहत। दिमागी असंतुलन, लकवा और यूटरस की बीमारियों में असरदार।
इसके अलावा इसके कुछ अन्य लाभ, जो क्लीनिकली प्रमाणित हैं -
1. बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से ऐसे स्वप्न नहीं आते।
2.
जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।
3.
जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति सफाई नियमों में बंधा होता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है।
4.
जनेऊ को दायें कान पर धारण करने से कान की वह नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।
5.
दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
6.
कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
7.
कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।


जनेऊ संस्कार का महत्व:

यह अति आवश्यक है कि हर परिवार धार्मिक संस्कारों को महत्व देवेंघर में बड़े बुजर्गों का आदर व आज्ञा का पालन होअभिभावक  बच्चों  के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह समय पर करते रहे। धर्मानुसार आचरण करने से सदाचारसद्‌बुद्धिनीति-मर्यादासही – गलत का ज्ञान प्राप्त होता है और घर में सुख शांति कायम रहती है। यह नियम ऊँची जातियों में होता हैं।

1. जनेऊ यानि दूसरा जन्म (पहले माता के गर्भ से दूसरा धर्म में प्रवेश से) माना गया है।
2.
उपनयन यानी ज्ञान के नेत्रों का प्राप्त होना, यज्ञोपवीत याने यज्ञ हवन करने का अधिकार प्राप्त होना।
3.
जनेऊ धारण करने से पूर्व जन्मों  के बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं।
4.
जनेऊ धारण करने से आयु, बल, और बुद्धि में वृद्धि होती है।
5.
जनेऊ धारण करने से शुद्ध चरित्र और जप, तप, व्रत की प्रेरणा मिलती है।
6.
जनेऊ से नैतिकता एवं मानवता के पुण्य कर्तव्यों को पूर्ण करने का आत्म बल मिलता है।
7.
जनेऊ के तीन धागे माता-पिता की सेवा और गुरु भक्ति का कर्तव्य बोध कराते हैं।
8.
यज्ञोपवीत संस्कार बिना विद्या प्राप्ति, पाठ, पूजा अथवा व्यापार करना सभी निर्थरक है।
9.
जनेऊ के तीन धागों  में 9 लड़ होती है, फलस्वरूप जनेऊ पहनने से 9 ग्रह प्रसन्न रहते हैं।
10.
शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण बालक 07 वर्ष, क्षत्रिय 11 वर्ष और वैश्य के बालक का 13 वर्ष के पूर्व संस्कार होना चाहिये और किसी भी परिस्थिति में विवाह योग्य आयु के पूर्व अवश्य हो जाना चाहिये।

उपरोक्त जानकारी संकलन के आधार पर जुटाई गई है.


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