Xplanner: चीन के साथ विवाद की पूरी कहानी / भारतीय
सैनिकों ने एलएसी पर 58 साल में चौथी बार 1973 के बाद से, भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 70 वर्षों में 5 बार पीएम के रूप में चीन का दौरा किया
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ü गलवान घाटी में भारत-चीन सेना के बीच हिंसक
झड़प से पहले 1975 में
अरुणाचल के तवांग में विवाद हुआ था, तब भारत के 4 सैनिक शहीद हुए थे
ü 1967 में भी भारत-चीन सेना के
बीच सिक्किम बॉर्डर के पास हुई
थीं, तब भारत की तरफ से 80 सैनिक शहीद हुए थे, और चीन के 400 सैनिक मारे गए थे
ü 1962 में भारत-चीन सेना
के बीच जंग में भारत के 1383 सैनिक
शहीद हुए थे, 3968 सैनिक
बंदी बनाए गए थे. और सैनिक 1696 लापता हो गए थे,
भारत और चीन के बीच का विवाद बहुत पुराना है, जिसके खत्म होने की
बस उम्मीद ही नजर आती है, पर
कोई नतीजा नहीं निकलता पिछले 58 सालों में चीन ने
भारत के साथ चौथी बार बड़ा विश्वासघात किया है। और इसकी वजह 4056 किमी लंबी सीमा का विवाद है. जो दुनिया में सबसे
अधिक ऊंचाई पर हिमालय की रेंज में स्थित है. यह सीमा हिमालय रेंज में पश्चिम से
पूरब की ओर जाती है। इतनी अधिक ऊंचाई पर भी सैनिक बहुत मुश्किल हालातों में तैनात रहते हैं। इनमें से कई जगह तो
ऐसी है जहां का तापमान साल भर 0 डिग्री से नीचे रहता है। यह दुनिया की सबसे
बड़ी ऐसी सीमा है जिसकी अभी तक पूरी तरह से मैपिंग भी नहीं हो पाई है। भारत
मैकमोहन लाइन को वास्तविक सीमा मानता है, जबकि चीन इस सीमा को नहीं मानता। 1962 में भारत और चीन के
बीच जो जंग हुई थी। वह भी इस सीमा रेखा के कारण थी.क्योंकि चीन ने लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश समेत
कई जगहों पर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया था। हालांकि चीन का यह कब्जा 58 साल बाद आज भी कायम
है। जहां तक चीन का कब्जा है, वहां तक की सीमा लाइन ऑफ ऐक्चुअल
कंट्रोल(एलएसी) या वास्तविक नियंत्रण रेखा के नाम से जाना जाता है।
भारत चीन सीमा पर गलवान घाटी की क्या स्थिति है?
भारत लद्दाख की जिस घाटी
में भारत के 20 सैनिक
शहीद हुए थे. उस घाटी का नाम है गलवान घाटी. और गलवान घाटी अक्साई चीन के क्षेत्र
में आता है. और सन 1956 से
चीन इसके पश्चिम इलाके पर अपने कब्जे का दावा करते आ रहा है. यह सन 1960 की बात है, जब चीन गलवान नदी के
पश्चिमी इलाके और उसके आसपास की पहाड़ियों और श्योक नदी की घाटी पर अपना दावा करने
लगा था. लेकिन
भारत लगातार कहता रहा है कि अक्साई चिन उसका इलाका है। इसके बाद ही 1962 में भारत-चीन के बीच
युद्ध हुआ। तब चीन ने यहां गोरखा पोस्ट पर हमला किया था। चीन की पीपुल्स
लिबरेशन आर्मी ने गलवान पोस्ट पर भारी गोलीबारी और बमबारी के लिए एक बटालियन को
भेजा था। और
इस दौरान हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 33 जवान मारे गए थे, कई कंपनी कमांडर और
अन्य लोगों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया। इसके बाद से चीन ने अक्साई-चिन पर अपने
दावों वाले पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
भारत-चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध की क्या वजह थी?
·
चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को भारत हमला बोल दिया था। इसका बहाना भले ही हिमालय की भारत-चीन सीमा ही
रही हो. लेकिन इसकी मुख्य वजह कुछ और थी. जिनमें से सबसे प्रमुख 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा को शरण देना था।
·
चीन ने अरुणाचल के तवांग में और लद्दाख के चुशूल में रेजांग-ला में भारतीय जमीनों पर अवैध
कब्जा कर लिया था। और भारत के चार मोर्चों पर (लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड और अरुणाचल) एक साथ हमला कर दिया.
·
इस समय भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था. और इस युद्ध में
चीन को जीत मिली. और इस युद्ध के शुरू होने के 1 महीने बाद ही चीन ने एक
महीने बाद 20 नवम्बर 1962
को
युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
1962 के भारत चीन युद्ध से संबंधित इमेज देखने के लिए क्लिक करें…..…Click here
एलएसी ( लाइन ऑफ एक्चुअल
कंट्रोल) पर कितने साल बाद सैनिक शहीद हुए?
·
भारत और चीन की सेनाएं पिछले महीने की शुरुआत से ही लद्दाख
में आमने-सामने हैं। पिछले महीने दोनों देशों के सैनिकों के बीच सिक्किम के नाकुला और पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग
में हाथापाई हुई थी।
·
इससे पहले भारत-चीन सीमा पर 45 साल पहले 1975 में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर सैनिकों की जान गई थी. तब
अरुणाचल प्रदेश में चीन की सेना ने भारतीय सेना के गश्ती दल पर हमला कर दिया था.
1962 की जंग के बाद दोनों देशों के बीच कौन-कौन से
बड़े विवाद हुए ?
1967- नाथु ला दर्रे के पास हुआ टकराव
1967 के नाथुला दर्रे के पास कोई टकराव का
मुख्य कारण यह था कि, भारत ने नाथूला से लेकर सेबू ला तक तार
लगाकर बॉर्डर की मैपिंग कर डाली। नाथूला दर्रा तिब्बत और सिक्किम की सीमा पर 14200
फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इसे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा
सड़क गुजरती है।
1965 में जब भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ था.
चीन ने भारत को नाथु ला और जेलेप ला दर्रे खाली करने को कहा। भारत ने जेलेप ला तो
खाली कर दिया, लेकिन नाथु ला दर्रे पर स्थिति पहले जैसी ही
रही। इसके बाद से ही नाथु ला विवाद का केंद्र बन गया।
चीन में फिर से भारतीय सीमा पर
आपत्ति की और फिर सेनाओं के बीच हाथापाई व टकराव की नौबत आ गई। और इसके कुछ दिन
बाद ही चीन ने मशीन गन से भारतीय सैनिकों पर हमला किया. भारत ने भी इस हमले का
जवाब दिया. और कई दिनों तक यह लड़ाई चलते रही.
चीन की सेना ने 20 दिन बाद फिर से भारतीय इलाके में घुसने की
कोशिश की। 1967 में भी सिक्किम-तिब्बत बॉर्डर के चोला के पास
भारत चीन सेना के बीच जंग हुई. जिसमें भारत ने चीन को करारा जवाब दिया। उस समय
भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि
चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।
1967 में मिली हार
को चीन कभी नहीं भुला पाया. और लगातार सीमा पर सैनिक गतिविधियां करता रहा. ऐसी ही
एक घटना 1975 में भी हुई थी जब चीन की सेना ने अरुणाचल
प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों की पेट्रोलिंग टीम पर अटैक किया
गया। इस हमले में भारतीय सेना के 4 जवान शहीद हो गए थे.
लेकिन चीन ने भारतीय सेना पर हुए इस हमले को नकार दिया.
1987 में दोनों देशों के बीच हुआ टकराव
1987 में भी भारत-चीन के बीच टकराव हुआ था.
ये टकराव तवांग के उत्तर में समदोरांग चू इलाके में हुआ। भारतीय फौज नामका चू के
दक्षिण में ठहरी थीं, 1985 में भारतीय फौज पूरी गर्मी में
यहां डटी रही, लेकिन 1986 की गर्मियों
में पहुंची तो यहां चीनी फौजें मौजूद थीं। समदोरांग चू के भारतीय इलाके में चीन
अपने तंबू गाड़ चुका था, भारत ने चीन को अपने सीमा में लौट
जाने के लिए कहा, लेकिन चीन मानने को तैयार नहीं था।
2017- डोकलाम में 75 दिन तक सेनाएं आमने-सामने डटी रह
डोकलाम एक विवादित पहाड़ी इलाका है. जिस पर भूटान और चीन
दोनों ही अपना दावा पेश करते हैं. भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता
है।
जून, 2017 में जब चीन ने यहां सड़क निर्माण का
काम शुरू किया तो भारतीय सैनिकों ने उसे रोक दिया था। यहीं से दोनों पक्षों के बीच
डोकलाम को लेकर विवाद शुरू हुआ था भारत की दलील थी कि चीन जिस सड़का का निर्माण
करना चाहता है, उससे सुरक्षा समीकरण बदल सकते हैं।
भारत का कहना था कि चीनी सैनिक
डोकलाम का इस्तेमाल करके भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर कब्जा कर सकते हैं. और इसी
विवाद के कारण भारत और चीन की सेना ने 75 दिनों से ज्यादा वक्त तक एक दूसरे के आमने-सामने डटी रही. लेकिन इस वक्त
कोई भी हिंसा नहीं हुई थी
1933 में हुआ भारत- चीन समझौता
1993 में भारत और चीन के बीच वास्तविक
नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और स्थिरिता को बनाए रखने के लिए समझौता हुआ था।
इस समझौते पर भारत के तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री आरएल भाटिया और चीन उप विदेश
मंत्री तांग जिसुयान ने हस्ताक्षर किए थे।
समझौते के तहत तय हुआ यह
- समझौते के तहत तय हुआ कि दूसरे पक्ष के
खिलाफ बल या सेना प्रयोग की धमकी नहीं दी जाएगी।
- दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां
वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे नहीं बढ़ेगी।
- अगर 1 पक्ष के जवान
वास्तविक नियंत्रण की रेखा को पार करते हैं, तो उधर से संकेत
मिलते ही तत्काल वास्तवित नियंत्रण रेखा में वापस चले जाएंगे।
- दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के
लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हर पक्ष की ओर से कम से कम सैन्य बल रखा जाए।
- भारत चीन की LAC पर
दोनों तरफ से हवाई घुसपैठ न हो इसके लिए समझौते में तय किया गया दोनों देशों की
एयरफोर्स सीमा क्रास नहीं करेंगी।
- हर पक्ष इस
समझौते के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास अलग-अलग स्तरों के सैन्य अभ्यास की
पूर्व सूचना देगा।
1933 से अब तक भारत -चीन संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में उठाए गए
बड़े कदम........
·
1993 के बाद से दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय
समझौते और प्रोटोकॉल को लेकर बात शुरू हुई, ताकि सीमा पर शांति बनी रहे।
चीन के साथ 90 के दशक में रिश्तों की बुनियाद 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे से रखी
गई।
·
1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी
नरसमिम्हा राव चीन दौर पर गए थे और इसी दौरान उन्होंने चीनी प्रीमियर ली पेंग के
साथ मेंटनेंस ऑफ पीस एंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर हस्ताक्षर किया था। यह समझौता
एलएसी पर शांति बहाल रखने के लिए था।
·
चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन 1996 में भारत के दौरे पर आए एलएसी को लेकर एक और समझौता हुआ। तब
तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
·
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सीमा
विवाद को लेकर स्पेशल रिप्रजेंटेटिव स्तर का मेकेनिजम तैयार किया।
·
मनमोहन सिंह ने 2005,
2012 और 2013 में चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बातचीत बढ़ाने पर तीन
समझौते किए थे। तब वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन में भारत के राजदूत हुआ
करते थे।
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मोदी ने पीएम बनने के बाद जिनपिंग को अहमदाबाद बुलाया। फिर 2018 में वुहान में जिनपिंग के साथ इन्फॉर्मल समिट की शुरुआत की।
इसी सिलसिले में 2019 में दोनों नेताओं की महाबलिपुरम में मुलाकात
हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीति कदम?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद चीन के साथ
संबंधों की शुरुआत गर्मजोशी से की थी। पांच बार चीन गए, 6 साल में जिनपिंग से 18 बार मिले. इसके बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मोदी की 18 बार मुलाकात हो चुकी है। इनमें वन-टू-वन मीटिंग के अलावा दूसरे देशों में दोनों नेताओं के बीच अलग
से हुई मुलाकातें भी शामिल हैं। मोदी पांच बार चीन के दौरे पर गए हैं। पिछले 70
सालों में किसी भी एक प्रधानमंत्री का चीन का यह सबसे ज्यादा बार
चीन दौरा है।
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